तूने न इतनी सी उम्र में कितनी बड़ी कीमत चुकाई ...पुरे हिंदुस्तान को कर्जदार कर दिया ...
कुछ तो चले थे आबरू कमाने ..तूने आज हम सब को नीलाम कर दिया ...
कुछ तो चले थे आबरू कमाने ..तूने आज हम सब को नीलाम कर दिया ...
2010 में मोहम्मद यूसुफ़ ने अपनी बहन की बेटी को गोद ले लिया था। बकरवाल घुमंतू समुदाय के यूसुफ़ ने जम्मू को अपना ठिकाना बना लिया था जहां पांच साल से इस समुदाय को लेकर डोगरा हिन्दुओं के मन में आबादी का भय खड़ा किया जा रहा था। रोहिंग्या मुसलमानों के यहां बसाए जाने से भी इसे हवा मिली कि आबादी का संतुलन बदल रहा है। आप जानते हैं कि आबादी का भय कौन खड़ा करता है। इनके भीतर का ज़हर ऊपर आने लगा कि कहीं जम्मू में भी मुसलमान न भर जाएं। शक और नफ़रत ने आठ साल की बच्ची को अपना शिकार बना लिया। आप चार्जशीट पढ़िए तो आपके भीतर बैठी उस भीड़ का ख़ौफ़नाक़ चेहरा नज़र आने लगेगा।
चार्जशीट में लिखा है कि इस हत्या में मंदिर का पुजारी 60 साल का सांझी राम और पुलिस अफ़सर दीपक खजुरिया शामिल है। इलाक़े से बकरवाल को भगाने की प्लानिंग कर रहे सांझी राम की नज़र कई दिनों से इस बच्ची पर थी। अक्सर टट्टूओं को चराने ले जाती थी। सांझी राम ने यह प्लान दीपक खजुरिया, अपने बेटे और भतीजे से साझा किया। यह भतीजा 18 साल से कम है, इसलिए यहां भतीजा ही कहूंगा। तीन महीने पहले ही भतीजे को एक लड़की के साथ ग़लत व्यवहार के लिए स्कूल से निकाला गया था।
पुलिस अफ़सर दीपक खजुरिया दवा की दुकान पर जाता है और बेहोशी की दवा ख़रीद लाता है। उसके बाद भतीजे से कहता है कि वह आसिफ़ा को अगवा कर लाएगा तो चोरी से इम्तहान पास करने में उसकी मदद कर देगा। भतीजा अपने दोस्त परवेश कुमार को बताता है। 9 जनवरी को भतीजा और परवेश जाते हैं और नशे के चार डोज़ ख़रीदते हैं।
10 जनवरी को भतीजा को सुनाई देता है कि किसी औरत से अपने टट्टुओं के बारे में पूछ रही है। वह बताता है कि उसने जंगलों में घोड़ों को देखा है। परवेश और भतीजा उसके साथ हो लेते हैं। पुलिस के अनुसार asf को कुछ शक होता है और वह भागने लगती है। भतीजा उसे पकड़ लेता है और धक्का देकर ज़मीन पर गिरा देता है। उसे ज़बरन ड्रग दे देता है। आ बेहोश हो जाती है। भतीजा उसका बलात्कार करता है। उसके बाद परवेश भी बलात्कार करने की कोशिश करता है मगर नहीं कर पाता है।
आ को उठा कर एक छोटे मंदिर में ले जाया जाता है, जिसका पुजारी सांझी राम है। अगले दिन दीपक खजुरिया और राम का भतीजा उसे देखने आते हैं। खजुरिया उसके मुंह में बेहोशी का दो टेबलेट ठेल देता है। शाम को भतीजा सांझी राम के बेटे को फोन करता है. जो मेरठ में कृषि स्नातक की पढ़ाई पढ़ रहा था। उसे कहता है कि अपनी प्यास बुझाना चाहते हो तो जल्द आओ। अगली सुबह विशाल जम्मू पहुंच जाता है और दो घंटे बाद आ को तीन टेबलेट दिए जाते हैं। उसे अब तक कुछ भी खाने को नहीं दिया गया है।
अब सांझी राम एक और पुलिस वाला तिलक राम को विश्वास में लेता है। 12 जनवरी की दोपहर आ के पिता मोहम्मद यूनूस पुलिस में केस दर्ज करते हैं। पुलिस तलाश पर निकलती है, उस टीम में दीपक खजुरिया और तिलक राम दोनों हैं। इन्हें बचाने के लिए बीजेपी के दो मंत्री और पार्टी के नेता सीबीआई की जांच की मांग का ढोंग रचते है और वहां हिन्दू एकता मंच का निर्माण होता है जिसके साथ ये लोग खड़े होते हैं।
सांझी राम अपनी बहन के यहां जाता है और कहता है कि उसके बेटे ने किसी लड़की अगवा किया है। बचाने के लिए पुलिस को रिश्वत देनी है। बहन से डेढ़ लाख लेकर आता है और तिलक राम को देता है। इसके ज़रिए पांच लाख देने की बात होती है जिसमें सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता को भी हिस्सेदार बनाया जाता है। आनंद दत्ता भी एक आरोपी है।
13 जनवरी को लोहड़ी के दिन सांझी राम, उसका बेटा और भतीजा मंदिर जाते हैं और पूजा करते हैं। सांझी राम के जाने के बाद उसका बेटा आ का बलात्कार करता है। फिर उसका छोटा भाई बलात्कार करता है। बलात्कार करने के बाद आ को तीन टेबलेट दिए जाते हैं।
लोहड़ी की शाम को सांझी राम सबको बताता है कि लड़की को मारने का वक्त आ गया है। उस रात आ को एक पुलिया के नीचे ले जाते हैं। तभी खजुरिया पहुंचता है और कहता है कि मारने से पहले एक और बार बलात्कार करना चाहता है। वह बलात्कार करता है। उसके बाद अपनी बायीं जांघ के नीचे आ का गर्दन दबाने की कोशिश करता है। नहीं कर पाता है। सांझी राम का भतीजा आता है और चुन्नी से उसकी गर्दन कस देता है। उसके पांव पीछे से मोड़ कर तोड़ देता है। आ मर गई है, यह पुख़्ता करने के लिए दो बार पत्थर से उसके सर पर मारता है।
लाश फिर से मंदिर में ले जाई जाती है। 15 जनवरी की सुबह जंगल में फेक दी जाती है। नज़ीर मसूदी ने लिखा है कि कोर्ट में वकीलों ने इतना हंगामा किया कि छह घंटे लग गए पुलिस को चार्जशीट दायर करने में। आसिफ़ा के ख़ून से सने कपड़े ग़ायब कर दिए जाते हैं। जिस डाक्टर ने पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट तैयार की, उसका तबादला हो जाता है। एस एस पी रमेश जल्ला ने बताया है कि वे हर हफ्ते हाई कोर्ट को स्टेटस रिपोर्ट दे रहे थे।
अब यहां से स्थानीय समाज अपनी मृत्यु का प्रमाण देता है। बाप यूसुफ़ अपनी ज़मीन में बेटी को दफ़नाना चाहता है मगर लोग दफ़नाने नहीं देते हैं। आ को अल्लाह ने आख़िरत के लिए दो ग़ज़ ज़मीन न दी और मंदिर में खड़े भगवान ने उसकी लाज नहीं बचाई। हम धर्म के नाम पर हैवान बने जा रहे हैं। यूसुफ़ 8 मील दूर गांव में आ की लाश को लेकर जाते हैं और दफ़न करते हैं। वहीं पर हमारी और आपकी अंतरात्मा भी दफ़न है।
रमेश कुमार जल्ला जाबांज़ और शानदार अफ़सर के नेतृत्व में आ की हत्या और बलात्कार के मामले में चार्जशीट बनी है। आ के परिवार को वक़ील नहीं मिला तो दीपिका आईं जो ख़ुद एक कश्मीरी पंडित हैं। जिस समाज ने नाइंसाफियां झेली हैं, उसे पता है नफ़रत के नाम पर हत्याओं के इस अंतहीन सिलसेला का दर्द। उसके नाम पर राजनीति करने वालों ने चार साल में एक बार भी कश्मीरी पंडितों का नाम नहीं लिया, बोले भी तो एक कश्मीरी पंडित की निष्ठा पर सवाल उठाने के लिए।
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