ऊँचे ऊँचे सपने थे,पंख फैला कर इठलाता यह चला तो था
माँ भारती को बचाने एक तिनका पहाड़ से भिड़ा तो था..
होना क्या था...पहाड़ के इशारो पर उसके रहनुमा हवा के झोंको ने कि कोशिश उड़ाने की तिनके को
....लेकिन तिनका भी कहा डिगा था अपनी जिद पर कट्टर वो तोअड़ा था ...
हुआ घमासान....
हिल गयी नीव पहाड़ की...जो सालो से अट्टहास के साथ अकड़ कर खड़ा था
तिनका था मासूम और छोटा..रहनुमाओ ने खेला खेल, बड़ा ही खोटा..
प्रयास था तिनके को कमजोर करने का
लेकिन.... तिनके की नियत थी साफ और इरादा था ठोस..
पहाड़ का घमंड हुआ चूर जब मिला तिनके को बोस...
अब लड़ाई तिनके की है जारी क्योकि रहनुमाओ के साथ पहाड़ के चूर होने की है तैयारी...
वक्त ये भी आएगा ..रहनुमाओ का बादशाह काल कोठरी मे गुनगुनाएगा..
वक्त का पहिया है वक्त से चलेगा .. देखना ये है तिनके जो चला था ...कब तक चलेगा...
होगी छल, भय की पराकाष्ठा ...तिनका है छोटा सा मासूम ये कब तक सहेगा....
तिनका है छोटा सा मासूम ये कब तक सहेगा...
आई आई टी मंडी में हो बवंडर के बीच तिनके रूपी छोटे से कर्मचारी यानि की मुझे अब मानसिक अस्वस्थ बोलकर जो आप यह आरोप से बच कर निकल रहे हो ...सुन लो कान खोलकर...एक तिनका पूरा जंगल तबाह कर सकता है... और रही सवाल मेरे मानसिक अस्वस्थ होने की...तो शुक्र है आपने इस पर मोहर लगा दी...वरना कल तक आप खुद सबूत मांग रहे थे ... खेर अब छोड़ो इस बात को ...जो भी देश के लिए सोचता है वो पागल ही होता है मेरे मानसिक अस्वस्थ होने का का कारन आपके द्वारा किये गए भेदभाव है ...कुछ सवाल है जेहन में उनके उत्तर जानने का मन व्याकुल है ....
1. एक साल एक अंदर ही मेरा तबदला करियर एंड प्लेसमेंट सेल में किया गया जबकि करियर एंड प्लेसमेंट के एडवाइजर ने मेल में साफ साफ अक्षरों में लिखा था आउट सोर्स के द्वारा हमको एक ऑफिस असिस्टेंट चाहिए, जबकि में रेगुलर कर्मचारी हूँ, फिर मेरा तबादला क्यों किया गया?
2. जब मेरा तबदला करियर एंड प्लेसमेंट सेल में किया गया और ऑफिस आर्डर में साफ साफ करियर एंड प्लेसमेंट सेल ही लिखा गया तो मुझे डीन स्टूडेंट के साथ दूसरे कार्यो को करने का अनैतिक दबाव क्यों डाला गया?
3. अनेकतिक दबाव बनाकर मुझसे जब कार्य करने का बोला गया तो उसकी सुचना ऑफिस आर्डर से न देकर एक कोंट्राक्टुअल एम्प्लोयी के द्वारा मेल से क्यों दिलवाई गयी,जबकि उस कर्मचारी को मेरी रिपोर्टिंग ही नहीं थी?
4. एक बार दोनों जगह कार्य करने का नश्चित होने पर भी बिना मुझसे पूछे चंद दिनों में ही क्यों उसको परिवर्तित किया गया? मेरे हस्ताक्षर रजिस्टर को को वैद्य नहीं माना गया?
5. कोंट्राक्टुअल एम्प्लोयी को यह अधिकार कहा से और किसने दिया की वह मुझे आर्डर दे और बॉस की तरह ट्रीट करे,जबकि वह उसका अधिकार क्षेत्र ही नहीं था?
6. जनवरी से लेकर फेब्रुअरी तक मेरे बैठने के लिए एक उचित व्यवस्था ,कंप्यूटर अदि क्यों बार बार बोलने पर भी नहीं दिए गए? यह सब सवाल है जो यह बताने के लिए काफी है की किस तरह से आप लोग मेरे सोशल बैकग्राउंड की वजह से पीछे पड़े थे...
इसके अलावा आई आई टी में व्याप्त भट्राचार,भाईभतीजावाद, आउट सोर्स कर्मचारियों का बुरी तरह शोषण, डर का माहौल, छोटे कर्मचारियों का शोषण ....यह सब काफी होते है किसी उस इंसान को मानसिक अस्वस्थ करने के लिए जो देश के प्रति जागरूक हो...जो ईमानदारी से अपनी जॉब करता हो...हर जिम्मेदारी के लिए ईमानदार हो ...देश हित के बारे में सोचता हो.... लेकिन अफ़सोस..
.रहनुमाओ के इस मौसम में ..खुद के ललाट पर खुद सरदार लिखने वाले कहा सच्चाई को समझेंगे ...ये तो वो लोग है जो अमावस्या की रात को बल्ब जलाकर दिन होने का दावा करते है ...
अरे रहनुमाओ के गोद से निचे उतर कर देखो...किस तरह के वायरस को बढ़ावा दे रहे हो तुम लोग...हम सब चल जायेंगे एक दिन... रहेगा तो यह आई आई टी और देश, सैकंडो सालो तक...
....दुखी है मन जब देश के बड़े संस्थान में इस तरह का आलम देखने को मिलता है...
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हुआ घमासान....
हिल गयी नीव पहाड़ की...जो सालो से अट्टहास के साथ अकड़ कर खड़ा था
तिनका था मासूम और छोटा..रहनुमाओ ने खेला खेल, बड़ा ही खोटा..
प्रयास था तिनके को कमजोर करने का
लेकिन.... तिनके की नियत थी साफ और इरादा था ठोस..
पहाड़ का घमंड हुआ चूर जब मिला तिनके को बोस...
अब लड़ाई तिनके की है जारी क्योकि रहनुमाओ के साथ पहाड़ के चूर होने की है तैयारी...
वक्त ये भी आएगा ..रहनुमाओ का बादशाह काल कोठरी मे गुनगुनाएगा..
वक्त का पहिया है वक्त से चलेगा .. देखना ये है तिनके जो चला था ...कब तक चलेगा...
होगी छल, भय की पराकाष्ठा ...तिनका है छोटा सा मासूम ये कब तक सहेगा....
तिनका है छोटा सा मासूम ये कब तक सहेगा...
आई आई टी मंडी में हो बवंडर के बीच तिनके रूपी छोटे से कर्मचारी यानि की मुझे अब मानसिक अस्वस्थ बोलकर जो आप यह आरोप से बच कर निकल रहे हो ...सुन लो कान खोलकर...एक तिनका पूरा जंगल तबाह कर सकता है... और रही सवाल मेरे मानसिक अस्वस्थ होने की...तो शुक्र है आपने इस पर मोहर लगा दी...वरना कल तक आप खुद सबूत मांग रहे थे ... खेर अब छोड़ो इस बात को ...जो भी देश के लिए सोचता है वो पागल ही होता है मेरे मानसिक अस्वस्थ होने का का कारन आपके द्वारा किये गए भेदभाव है ...कुछ सवाल है जेहन में उनके उत्तर जानने का मन व्याकुल है ....
1. एक साल एक अंदर ही मेरा तबदला करियर एंड प्लेसमेंट सेल में किया गया जबकि करियर एंड प्लेसमेंट के एडवाइजर ने मेल में साफ साफ अक्षरों में लिखा था आउट सोर्स के द्वारा हमको एक ऑफिस असिस्टेंट चाहिए, जबकि में रेगुलर कर्मचारी हूँ, फिर मेरा तबादला क्यों किया गया?
2. जब मेरा तबदला करियर एंड प्लेसमेंट सेल में किया गया और ऑफिस आर्डर में साफ साफ करियर एंड प्लेसमेंट सेल ही लिखा गया तो मुझे डीन स्टूडेंट के साथ दूसरे कार्यो को करने का अनैतिक दबाव क्यों डाला गया?
3. अनेकतिक दबाव बनाकर मुझसे जब कार्य करने का बोला गया तो उसकी सुचना ऑफिस आर्डर से न देकर एक कोंट्राक्टुअल एम्प्लोयी के द्वारा मेल से क्यों दिलवाई गयी,जबकि उस कर्मचारी को मेरी रिपोर्टिंग ही नहीं थी?
4. एक बार दोनों जगह कार्य करने का नश्चित होने पर भी बिना मुझसे पूछे चंद दिनों में ही क्यों उसको परिवर्तित किया गया? मेरे हस्ताक्षर रजिस्टर को को वैद्य नहीं माना गया?
5. कोंट्राक्टुअल एम्प्लोयी को यह अधिकार कहा से और किसने दिया की वह मुझे आर्डर दे और बॉस की तरह ट्रीट करे,जबकि वह उसका अधिकार क्षेत्र ही नहीं था?
6. जनवरी से लेकर फेब्रुअरी तक मेरे बैठने के लिए एक उचित व्यवस्था ,कंप्यूटर अदि क्यों बार बार बोलने पर भी नहीं दिए गए? यह सब सवाल है जो यह बताने के लिए काफी है की किस तरह से आप लोग मेरे सोशल बैकग्राउंड की वजह से पीछे पड़े थे...
इसके अलावा आई आई टी में व्याप्त भट्राचार,भाईभतीजावाद, आउट सोर्स कर्मचारियों का बुरी तरह शोषण, डर का माहौल, छोटे कर्मचारियों का शोषण ....यह सब काफी होते है किसी उस इंसान को मानसिक अस्वस्थ करने के लिए जो देश के प्रति जागरूक हो...जो ईमानदारी से अपनी जॉब करता हो...हर जिम्मेदारी के लिए ईमानदार हो ...देश हित के बारे में सोचता हो.... लेकिन अफ़सोस..
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