निजी कृषि विश्वविद्यालय पर राज्य सरकार की दरियादिली एवं छात्रों के साथ धोखा, रिक्त रही 57% सीटों के लिए लाखो रुपये से करवाया अतरिक्त जेट जेट
कांग्रेस देश में गिनती के राज्यों में ही सरकार में होने का स्वाद चख रही है, और जहां है वहां भी आपसी तालमेल और आतंरिक कलह में उलझी हुई है जिसका खामियाजा आम जन को भुगतना पड़ रहा है और अब राजस्थान में भी अंधी कांग्रेस सरकार की एक गलत नीति या यु कहे जानभूझकर "गलती " करने वाली नीति से हजारो विद्यार्थियों का तो भविष्य अंधकार में है ही लेकिन अब सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े करने में कोई संकोच नहीं है,मामला है निजी विश्विद्यालयों को फायदा पहुंचाने का ।
राजस्थान में कांग्रेस सरकार का गुपचुप तरीके से निजी कृषि विश्विद्यालयों में रिक्त रही आधी से (57%) ज्यादा सीटों को भरने के लिए अधिकारियो पर अनैतिक दबाव डालकर, सुझावों को सिरे से ख़ारिज करते हुए दुबारा जेट की परीक्षा करवाना, सरकारी पैसे का दुरूपयोग, सरकारी सिस्टम का मिसयूज एवं विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने के साथ-साथ, सरकार की मंशा पर भी सवालिया निशान खड़े करता है । जहां भारतीय कृषि अनुसन्धान दिल्ली (ICAR) ने साफ तोर पर निर्देश जारी कर कहा है की निजी विश्वविद्यालय जो नॉन अक्रेडट है से पास आउट विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए सरकारी विश्विद्यालयों में दाखिला ना दिया जाये वही कांग्रेस शासित राज्य में खुले आम विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है,राजस्थान सरकार उन सभी निजी विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को दाखिला दे रही है जहां से डिग्री करने के बाद उन विद्यार्थियों को राजस्थान के बाहर उच्च शिक्षा के लिए योग्य नहीं माना जायेगा और तो और शायद वह डिग्री धारक सरकारी नौकरी के लिए भी अपात्र माने जा सकते है, सरकार की जानभूझकर विद्यार्थियों को निजी विश्विद्यालयों में भेजने की मंशा क्या है यह समझ के परे है क्योकि यह निजी विश्वविद्यालय सरकार को ना कोई ऑफिसियल पैसा देते है ना ही कुछ जानकारी, यह सब अपनी मर्जी के मालिक है और अधिकतर में तो डिग्री के नाम धंधा किया जाता है
यहाँ तक की राजस्थान राज्य के निजी विश्विद्यालय एक्ट-2005 के सेक्शन 2 (r) अनुसार भी ICAR निजी कृषि विश्वविद्यालय की नियंत्रक बॉडी है साथ ही सेक्शन 39 के अनुसार भी कृषि निजी विश्विद्यालय को ICAR के नियम कायदो को मानना अनिवार्य है लेकिन राजस्थान का दुर्भाग्य है की 18 निजी विश्विद्यालय में से एक भी ICAR के नियम कायदो को नहीं नहीं मानता और इसी वजह से ICAR से अक्रेडिट नहीं है ।
सरकार के अतिरिक्त जेट करवाने के आदेश पर, जेट कोऑर्डिनेटर ने साफ शब्दों में सरकार को 14 अगस्त 2019 को पत्र लिखकर सरकार के "सिर्फ निजी विश्विद्यालय" में खाली पड़ी 1064 सीटों के लिए दुबारा जेट का एग्जाम कंडक्ट करवाने के आदेश पर पुनः: विचार करने के लिए कहा और साथ ही कुछ महवत्पूर्ण बिंदु भी दिए जो यह दर्शाते है की जेट विभाग किस तरह से छात्रों के हित की बात कर सरकार के पैसे,समय और साख को बचाना चाहते है, उन्होंने उन्होंने जो सुझाव दिए वो बिंदुवार निम्न है-
1. यदि रिक्त रही सीटों के लिए अतिरिक्त जेट परीक्षा का आयोजन किया जाता है तो "भारतीय कृषि अनुसन्धान दिल्ली (ICAR) के द्वारा दिए गए निर्देशानुसार नॉन अक्रेडिक एवं निजी विश्विद्यालय से पढ़ाई किये हुए विद्यार्थियों को राज्य सरकारी विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा हेतु दाखिला नहीं दिया जाना है" के कारण अभ्यर्थी सिर्फ निजी विश्वविद्यालय के लिए करवाए जाने वाले जेट में आएंगे इसकी सम्भावना काफी कम नजर आती है, जिस कारण इस परीक्षा के आयोजन में होने वाला खर्चा भी नहीं निकल पायेगा ।
2. पहले जेट में लगभग 28,000 विद्यार्थियों ने आवेदन किया था जिसमे से सारी कॉउन्सिलिंग होने के बाद भी लगभग 20,000 विद्यार्थी ऐसे थे जिन्हे कोई भी सीट आवंटित नहीं हुई,क्यों ना निजी विश्विद्यालय को खुद से उन विद्यार्थियों के माध्यम से सीट को सीधे भरने की अनुमति दी जाये।
3. तीसरा जो सबसे महत्वपूर्ण सुझाव जेट कोऑर्डिनेटर ने दिया वो था की " कृषि पाठ्यक्रम सेमस्टर स्कीम के तहत होता है और यदि दुबारा जेट करवाकर पूरा प्रोसेस किया जाये तो नए विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल जायेगा (कम से कम तीन महीने) इन परिस्थितियों में यदि आदेश हो तो एक बार पुनः ऑनलाइन कोउन्सल्लिंग करवाकर उपलब्ध छात्रों से रिक्त सीटों को भरने की कारवाही की जाये , यह विकल्प ज्यादा उचित प्रतीत होता है।
उसके बाद जेट कोऑर्डिनेटर ने लिखा " अति आवश्यक होने पर अतिरिक्ति जेट परीक्षा का योजन करवाना है तो उसके लिए शुरुआती 50 लाख रुपए की धनराशि की उपलब्धता सुनिश्चित करवाए ।
अथार्थ कहा जा सकता है लगभग 5000 रुपये एक सीट के लिए खर्चा अनुमानित माना गया है प्राम्भिक तोर पर ।
उसके बाद जेट विभाग द्वारा जेट की अतिरकित परीक्षा करवाई जाती है जिसमे मात्रा 360 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया और परीक्षा दी जबकि टोटल सीट 1064 थी कई निजी विश्विद्यालय में तो 95% सीट खाली रही थी
तो फिर क्यों सरकार सरकारी पैसे का दुरूपयोग कर रही है ?
1. सरकार ने क्यों अतिरिक्त जेट करवाने का दबाव डाला जबकि रिक्त रही सारी सीटें निजी विश्वविद्यालय की थी?
2. सरकार ने सभी रिक्त रही सीटों पर दाखिला करवाने के लिए परीक्षा आयोजन की राशि क्यों निजी विश्वविद्यालय से नहीं ली ? जबकि इस परीक्षा के बाद फायदा सीधे रूप से निजी विश्वविद्यालय को ही होना है
3. जिन 20,000 विद्यार्थियों ने इससे पहले 2800/- रुपये या 1400/- रुपये देकर परीक्षा दी थी और उनको कोई सीट आवंटित नहीं हुई उनसे दुबारा क्यों फीस ली गयी ?
4. अतिरिक्त जेट को करवाने के लिए पूर्व में आयोजित जेट के लिए विद्यार्थियों से आवेदन शुल्क के रूप में एकत्र की गयी धन राशि को क्यों काम में लिया गया, यदि कोई धनराशि बची ही थी तो विद्यार्थियों को क्यों नहीं लौटाई गयी ?
5. ICAR के दिशा निर्देश होने के बावजूद क्यों सरकार ने विद्यार्थियों में वस्तु स्थिति स्पष्ट ना करि बल्कि अपने माध्यम से उन विश्विद्यालय में दाखिला करवाया जो ना तो ICAR से अक्रेडिट है ना ही राजस्थान राज्य निजी विश्विद्यालय एक्ट की अनुपलना कर रहे है ?
6. क्यों जेट कोऑर्डिनेटर के तमाम सुझावों को दरकिनार किया गया ?
जब इस कदर सीट सीटें खाली रह रही है , विद्यार्थी का कोई रुझान नहीं है फिर भी सरकार क्यों आतुर हो रही थी इन सीटों को भरने के लिए- उसके पीछे कारण है की , ICAR के दिशानिर्देश आने के बाद विद्यार्थियों में कोतुहल का विषय था की क्या इन निजी विश्वविधालय से एग्रीकल्चर की डिग्री लेना सही है या नहीं , क्या हमारी डिग्री वेध होगी या नहीं , उन्ही सब अटकलों के बीच निजी विश्वविधालय में दाखिले का ग्राफ गिरने लगा जिसके लिए निजी विश्वविधालय ने एक तोड़ निकला उसका नाम था "जेट". राज्य सरकार द्वारा जब निजी विश्वविधालय में दाखिला दोय जाने लगा तो निजी विश्वविधालय के लिए यह संजीवनी साबित हुई अब विद्यार्थियों में भ्रामक स्थिति बनी की हमे तो सरकार ने खुद दाखिला दिया है तो हमारी डिग्री वेध कैसे नहीं होगी,? चूँकि कृषि में अदिकतर कृषि परिवार से जुड़े लोग अपने बच्चो का दाखिला करवाते है उनमे इसी की समझ नहीं होती जी ICAR क्या है और उसके दिशा निर्देश कितने मायने रखते है लेकिन जो थोड़े जागरूक परिवार से तालुक रखते है वो इसकी गंभीरता को समझते है और इसी वजह से जेट के एग्जाम में इस तरह सीट खाली रह गयी।
इस परीक्षा में सम्पूर्ण राज्य से कुल 28078 परीक्षार्थियों ने भाग लिया, जिनका सपना कृषि सम्बंधित विषयो में ज्ञान एवं डिग्री अर्जित करना था । विद्यार्थियों के लिए परीक्षा शुल्क की राशि रुपये 2800/- सामान्य एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए रखी गयी जबकि रुपये 1400/- अन्य वर्ग के लिए रखी गयी, अत: इस परीक्षा के लिए आवेदन शुल्क से ही लगभग विभाग ने 6 करोड़ 80 लाख 58 हजार रुपये से ज्यादा की धनराशि एकत्र कर ली । टोटल सीट लगभग 5850 रही अत: कहा जा सकता है हर एक सीट के लिए जेट विभाग को लगभग 11500/- विद्यार्थियों से आवेदन शुल्क के रूप में प्राप्त हुए थी ।
इस 5850 सीट में से 1860 सीट निजी विश्वविद्यालय की थी एवं बाकि सरकारी, इन 1860 सीटों में से 1064 सीट पर विद्यार्थियों ने दाखिला नहीं लिया ।
यहाँ तक बीजेपी के नेता एवं वर्तमान में बीजेपी राज्य अध्यक्ष सतीश पूनिया ने जेट के माध्यम से निजी विश्विद्यालय में दिए जा रहे दाखिले पर सरकार से विधानसभा में जवाब माँगा था और तो और खुद कृषि मंत्री ने कहा था की वो विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होने देंगे ।
अब देखना यह है की सरकार के ऊपर उठे इन गंभीर सवालो की जाँच होगी या आंखे मूंद ली जाएगी ।
राजस्थान में कांग्रेस सरकार का गुपचुप तरीके से निजी कृषि विश्विद्यालयों में रिक्त रही आधी से (57%) ज्यादा सीटों को भरने के लिए अधिकारियो पर अनैतिक दबाव डालकर, सुझावों को सिरे से ख़ारिज करते हुए दुबारा जेट की परीक्षा करवाना, सरकारी पैसे का दुरूपयोग, सरकारी सिस्टम का मिसयूज एवं विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने के साथ-साथ, सरकार की मंशा पर भी सवालिया निशान खड़े करता है । जहां भारतीय कृषि अनुसन्धान दिल्ली (ICAR) ने साफ तोर पर निर्देश जारी कर कहा है की निजी विश्वविद्यालय जो नॉन अक्रेडट है से पास आउट विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए सरकारी विश्विद्यालयों में दाखिला ना दिया जाये वही कांग्रेस शासित राज्य में खुले आम विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है,राजस्थान सरकार उन सभी निजी विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को दाखिला दे रही है जहां से डिग्री करने के बाद उन विद्यार्थियों को राजस्थान के बाहर उच्च शिक्षा के लिए योग्य नहीं माना जायेगा और तो और शायद वह डिग्री धारक सरकारी नौकरी के लिए भी अपात्र माने जा सकते है, सरकार की जानभूझकर विद्यार्थियों को निजी विश्विद्यालयों में भेजने की मंशा क्या है यह समझ के परे है क्योकि यह निजी विश्वविद्यालय सरकार को ना कोई ऑफिसियल पैसा देते है ना ही कुछ जानकारी, यह सब अपनी मर्जी के मालिक है और अधिकतर में तो डिग्री के नाम धंधा किया जाता है
यहाँ तक की राजस्थान राज्य के निजी विश्विद्यालय एक्ट-2005 के सेक्शन 2 (r) अनुसार भी ICAR निजी कृषि विश्वविद्यालय की नियंत्रक बॉडी है साथ ही सेक्शन 39 के अनुसार भी कृषि निजी विश्विद्यालय को ICAR के नियम कायदो को मानना अनिवार्य है लेकिन राजस्थान का दुर्भाग्य है की 18 निजी विश्विद्यालय में से एक भी ICAR के नियम कायदो को नहीं नहीं मानता और इसी वजह से ICAR से अक्रेडिट नहीं है ।
जेट कोर्डिनेटर ने सरकार को सुझाव में अतिरिक्त जेट करवाना बताय अर्थहीन-
1. यदि रिक्त रही सीटों के लिए अतिरिक्त जेट परीक्षा का आयोजन किया जाता है तो "भारतीय कृषि अनुसन्धान दिल्ली (ICAR) के द्वारा दिए गए निर्देशानुसार नॉन अक्रेडिक एवं निजी विश्विद्यालय से पढ़ाई किये हुए विद्यार्थियों को राज्य सरकारी विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा हेतु दाखिला नहीं दिया जाना है" के कारण अभ्यर्थी सिर्फ निजी विश्वविद्यालय के लिए करवाए जाने वाले जेट में आएंगे इसकी सम्भावना काफी कम नजर आती है, जिस कारण इस परीक्षा के आयोजन में होने वाला खर्चा भी नहीं निकल पायेगा ।
2. पहले जेट में लगभग 28,000 विद्यार्थियों ने आवेदन किया था जिसमे से सारी कॉउन्सिलिंग होने के बाद भी लगभग 20,000 विद्यार्थी ऐसे थे जिन्हे कोई भी सीट आवंटित नहीं हुई,क्यों ना निजी विश्विद्यालय को खुद से उन विद्यार्थियों के माध्यम से सीट को सीधे भरने की अनुमति दी जाये।
3. तीसरा जो सबसे महत्वपूर्ण सुझाव जेट कोऑर्डिनेटर ने दिया वो था की " कृषि पाठ्यक्रम सेमस्टर स्कीम के तहत होता है और यदि दुबारा जेट करवाकर पूरा प्रोसेस किया जाये तो नए विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल जायेगा (कम से कम तीन महीने) इन परिस्थितियों में यदि आदेश हो तो एक बार पुनः ऑनलाइन कोउन्सल्लिंग करवाकर उपलब्ध छात्रों से रिक्त सीटों को भरने की कारवाही की जाये , यह विकल्प ज्यादा उचित प्रतीत होता है।
उसके बाद जेट कोऑर्डिनेटर ने लिखा " अति आवश्यक होने पर अतिरिक्ति जेट परीक्षा का योजन करवाना है तो उसके लिए शुरुआती 50 लाख रुपए की धनराशि की उपलब्धता सुनिश्चित करवाए ।
अथार्थ कहा जा सकता है लगभग 5000 रुपये एक सीट के लिए खर्चा अनुमानित माना गया है प्राम्भिक तोर पर ।
सरकार ने महत्वपूर्ण सुझावों पर नहीं किया अमल-
इन तमाम सुझावों को रद्दी के टोकरे में डालते हुए कांग्रेस की सरकार के कृषि विभाग ने कुलसचिव को आदेश दिया की 14 अगस्त 2019 को जारी किये गए कार्यक्रम अनुसार अतिरिक्त जेट का आयोजन करवाया जाये, इस आयोजन के लिए राशि अभ्यर्थी से आवेदन शुल्क के रूप में ली जाये एवं तत्कालीन व्यवस्था के लिए हाल ही में सम्पन्न हुई जेट से प्राप्त राशि से ली जाये ।उसके बाद जेट विभाग द्वारा जेट की अतिरकित परीक्षा करवाई जाती है जिसमे मात्रा 360 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया और परीक्षा दी जबकि टोटल सीट 1064 थी कई निजी विश्विद्यालय में तो 95% सीट खाली रही थी
तो फिर क्यों सरकार सरकारी पैसे का दुरूपयोग कर रही है ?
इन तमाम बातो पर सरकार के ऊपर खड़े हो रहे है निम्न गंभीर सवाल-
2. सरकार ने सभी रिक्त रही सीटों पर दाखिला करवाने के लिए परीक्षा आयोजन की राशि क्यों निजी विश्वविद्यालय से नहीं ली ? जबकि इस परीक्षा के बाद फायदा सीधे रूप से निजी विश्वविद्यालय को ही होना है
3. जिन 20,000 विद्यार्थियों ने इससे पहले 2800/- रुपये या 1400/- रुपये देकर परीक्षा दी थी और उनको कोई सीट आवंटित नहीं हुई उनसे दुबारा क्यों फीस ली गयी ?
4. अतिरिक्त जेट को करवाने के लिए पूर्व में आयोजित जेट के लिए विद्यार्थियों से आवेदन शुल्क के रूप में एकत्र की गयी धन राशि को क्यों काम में लिया गया, यदि कोई धनराशि बची ही थी तो विद्यार्थियों को क्यों नहीं लौटाई गयी ?
5. ICAR के दिशा निर्देश होने के बावजूद क्यों सरकार ने विद्यार्थियों में वस्तु स्थिति स्पष्ट ना करि बल्कि अपने माध्यम से उन विश्विद्यालय में दाखिला करवाया जो ना तो ICAR से अक्रेडिट है ना ही राजस्थान राज्य निजी विश्विद्यालय एक्ट की अनुपलना कर रहे है ?
6. क्यों जेट कोऑर्डिनेटर के तमाम सुझावों को दरकिनार किया गया ?
निजी विश्विवद्यालय की 1860 सीटों में से 1064 सीट पर विद्यार्थियों ने दाखिला नहीं लिया अथार्थ 57 % Seats खाली रह गयी और मात्र 43 % सीट पर विद्यार्थियों ने दाखिला लिया, कहा जा रहा है इनमे से भी कई विद्यार्थी छोड़कर चले गए, सीट मैट्रिक्स इस प्रकार है-
जेट के माधयम से जब दाखिला होने लगा तो निजी विश्वविधालय ने इसे मान्यता का सर्टिफिकेट मान लिया और कई निजी विश्वविधालय ने तो दलालो के माध्यम से जेट से ज्यादा आवंटित सीटों पर दाखिला दे दिया , कहा जाता है यह दाखिला दो नंबर की कमाई करने की तरीका है , चूँकि निजी विश्वविधालय को कहि पर अपने डाटा पूर्ण रूप से नहीं भेजना पड़ता इसलिए उनकी यह सबसे बड़ी चोरी या यु कहे तो डकैती पकड़ नहीं आ सकती जब तक सरकार कोई कठोर निर्णय ना ले ले ।
यह तमाम सवाल है जो गंभीर रूप से सरकार के ऊपर खड़े होते है मालूम हो कृषि विश्वविद्यालय कोटा द्वारा जेट-2019 का आयोजन करवाया गया जिसके माध्यम से राजस्थान राज्य के अंदर आने वाले समस्त सरकारी, निजी विश्विद्यालय, कॉलेज में विद्यार्थियों को कृषि से जुड़े पाठ्यक्रम में दाखिला दिया गया है ।
इस 5850 सीट में से 1860 सीट निजी विश्वविद्यालय की थी एवं बाकि सरकारी, इन 1860 सीटों में से 1064 सीट पर विद्यार्थियों ने दाखिला नहीं लिया ।
यहाँ तक बीजेपी के नेता एवं वर्तमान में बीजेपी राज्य अध्यक्ष सतीश पूनिया ने जेट के माध्यम से निजी विश्विद्यालय में दिए जा रहे दाखिले पर सरकार से विधानसभा में जवाब माँगा था और तो और खुद कृषि मंत्री ने कहा था की वो विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होने देंगे ।
अब देखना यह है की सरकार के ऊपर उठे इन गंभीर सवालो की जाँच होगी या आंखे मूंद ली जाएगी ।
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