आई आई टी मंडी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ भरत ने बनाया अनोखा रिकॉर्ड, साइटेशन स्कोर एक साल में गिरा औंधे मुँह, 6645 से रह गया मात्र 745
इंसान गलतियों का पुतला होता है और इंसान से गलती होना आम बात है, लेकिन समय रहते गलती को स्वीकार कर उसमे सुधार कर लेना ही एक महान इंसान की पहचान है. भले ही उस गलती को सुधार करने से उसकी इज्जत की धज्जिया उड़ जाये, वो हंसी का पात्र बन जाये लेकिन फिर भी उसका कद कही ऊँचा हो जाता है. हालाँकि कई बार गलती सुधारने के लिए ऊपर से दबाव भी डाला जाता है तब जाकर इंसान मन मानकर गलती सुधारता है.
आई आई टी मंडी तो शुरू से रिकॉर्ड बनाने में अव्वल रहा है. इसी में एक नाम और जुड़ गया डॉ भरत सिंह राजपुरोहित का.आई आई टी मंडी के तत्कालीन डीन फैकल्टी डॉ भरत सिंह राजपुरोहित ने अपने गूगल स्कॉलर में सुधार कर लिया है लेकिन पहले जो बड़ा चढ़ा कर जो डाटा बता रखा था और उससे जो फायदा उठाया उसके प्रायश्चित के बारे में क्या किया ? यह विचार योग्य है.आई आई टी मंडी को भी उनको प्रायश्चित करने का मौका देना चाहिए और उनके ऊपर संज्ञान लेना चाहिए. मुझे उम्मीद है इस बड़े हुए डाटा से जो भी फायदा उन्होंने उठाया उसको पूरी ईमानदारी से सूत समेत वापस लोटा देंगे डॉ साहब.
गत वर्ष दुनिया की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी स्टेनफोर्ड ने अपने फिल्ड में दक्षता हासिल करने वाले टॉप 2 प्रतिशत वैज्ञानिको की सूचि जारी की थी, जिसमे आई आई टी मंडी के तत्कालीन डीन फैकल्टी रहे एसोसिएट प्रोफेसर डॉ भरत सिंह राजपुरोहित का भी नाम रहा. उन्हें विषय के अनुसार वर्ल्ड वाइड रैंकिंग में 3643 स्थान दिया गया.यूनिवर्सिटी द्वारा दी गयी सूचि में इनके द्वारा 134 पेपर पब्लिश्ड होना बताया गया था तथा दर्शाया गया की पहला पेपर वर्ष 1972 में पब्लिश्ड हुआ था. जब यह सूचि जारी की गयी तो इसमें चौंकाने वाला खुलासा हुआ. जिन पेपर एवं साइटेशन स्कोर के बदले इनको वर्ड वाइड रैंकिंग में स्थान दिया गया और टॉप 2 प्रतिशत वैज्ञानिको की सूचि में रखा गया उसमे बहुत बड़ी खामी देखने को मिली. डॉ भरत का जन्म ही आई टी मंडी के रिकॉर्ड के अनुसार 1981 में हुआ था तो इनका पहला पेपर 1972 में कैसे पब्लिश्ड हो सकता था ? जब यह मामला सामने आया तो भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों में आई आई टी मंडी की किरकिरी हो गयी और कई जगह जारी की गयी सूचि की विश्वसनीयता के ऊपर भी सवाल उठने लगे. हालाँकि आई आई टी मंडी के कर्मचारियों में टैलेंट की कमी नहीं है. वही के कुछ अधिकारियो ने तो इस बारे में यह तक कहने का विचार जरूर बनाया होगा की डॉ पुरोहित जन्म से पहले से ही बहुत इंटेलीजेंट रहे है. उन्होंने जन्म लेने से पहले ही रिसर्च में अच्छा योगदान दिया था और इसके लिए उनको पद्मश्री से सम्मानित भी किया जाना चाहिए था.
A news Published in Dec 2020 |
खेर जब मुझ तक यह मामला पहुंचा तो शिक्षा मंत्रालय के पास मेरे द्वारा शिकायत दर्ज करवाई.
अब पता चला है की डॉ भरत सिंह ने बुझे मन से अपनी गलती को स्वीकार करते हुए अपने गूगल स्कॉलर में सुधार कर दिया है. मुझे लगता है शायद बचपने में उन्होंने यह गलत डाटा गूगल स्कॉलर पर अपलोड कर दिया होगा या फिर उनको बदनाम करने की साजिश के तहत यह किसी खुरापाती ने उनके गूगल स्कॉलर पर अपलोड कर दिया होगा क्योकि वो जानभूझकर तो खुद के जन्म से पहले हुए पब्लिश्ड पेपर में क्रेडिट लेने पहुँच जायेंगे, इतने मुर्ख नहीं हो सकते वो. उनका पहला पेपर वर्ष 2006 में पब्लिश्ड हुआ साथ ही उनके अब तक 128 पेपर ही पब्लिश्ड हुए है. सुधार से पहले और बात में कितना अंतर आ गया. हैरान कर देने वाली बात है की पहले उनका साइटेशन स्कोर उनके ही गूगल स्कॉलर में पहले 6647 था जो की अब बढ़ने की बजाये घटकर लगभग 11% (745) ही रह गया. यह भी एक बहुत बड़ा रिसर्च का मुद्दा है.
इस विषय के एक्सपर्ट का कहना है की इस तरह की सूचि जो यूनिवर्सिटी ने जारी की, वो गूगल स्कॉलर पर मौजूदा जानकारी के हिसाब से की गयी.जिसकी गूगल स्कॉलर प्रोफाइल मजबूत होती है उसकी प्रतिष्ठा अधिक है. गूगल स्कॉलर एक तहर से फैकल्टी का बहीखाता होता है और उसमे फैकल्टी द्वारा ही जानकारी अपलोड की जाती है. कई बार अपनी प्रोफाइल को मजबूत दिखाने के लिए फैकल्टी झूठी जानकारी भी अपलोड कर देते है. साइटेशन स्कोर जिसका जितना ज्यादा होता है उसकी वैल्यू उतनी ज्यादा होती है.गूगल स्कॉलर में फैकल्टी को सही जानकारी उपलोड करनी चाहिए, अपनी प्रोफाइल को मजबूत दिखाने के लिए गलत जानकारी अपलोड कर विद्यार्थियों एवं तकनिकी क्षेत्र से जुड़े लोगो को गुमराह नहीं करना चाहिए.बता दे डॉ भरत के गूगल स्कॉलर में पहले साइटेशन स्कोर 6647 था जो की अब घटकर मात्र 745 रह गया और पब्लिश्ड पेपर की संख्या वर्ष 2011 तक ही 134 थी जबकि ताजा जानकारी के अनुसार वर्ष 2021 तक उनके गूगल स्कॉलर में पब्लिश्ड पेपर की संख्या 128 ही है.
अन्य आई आई टी संस्था के फैकल्टी से जब मेने बात की तो उन्होंने बताया की डॉ भरत ने पहले गलत जानकरी गूगल स्कॉलर पर जानभूझकर अपलोड कर रखी थी जिस वजह से उनको दुनिया की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी स्टेनफोर्ड ने टॉप 2 प्रतिशत वैज्ञानिको की सूचि में रखा. शिकायत और मीडिया के द्वारा इस मामले को प्रकाश में लाने के बाद आज उन्होंने अपने गूगल स्कॉलर में सुधार कर लिया है.
हालाँकि इस शानदार रिकॉर्ड के लिए डॉ भारत को आई आई टी मंडी में डीन फैकल्टी से डीन इंफ़्रा बना दिया गया है.
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