नवरात्रे हुए सम्पन्न, देखते है मातारानी के पांडाल में गरबे के आयोजन में नाचने वाले कितने काफिर पर जारी होता है फतवा...
उत्तर प्रदेश में हर-हर शम्भू भजन की कॉपी गाने वाली तीन तलाक पीड़िता गायक कलाकार फ़रमानी नाज हो या फिर अलीगढ़ की रूबी खान जिसने खुद के घर में गणेशोत्सव पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की और तो और रांची की योग सिखाने वाली टीचर राफिया नाज तक को इस्लाम धर्म के तथाकथित नियमो के विपरीत जाने के आरोप पर फतवे का सामना करना पड़ा।आगे बात करे तो भारतीय क्रिकेट के स्टार मोहम्मद शमी तक के ख़िलाफ़ दशहरे की शुभकामनाएं देने के जुर्म में इस्लाम के मौलाना-मौलवियों ने फतवे जारी करने की धमकी दे डाली थी। लेकिन पुरे नो दिन के नवरात्रि निकल गए, समस्त गरबे भी सफलतापूर्वक संपन्न हो गए, मेरी निगाहे टक-टकी लगाकर देश के किसी भी कोने से, मातारानी के पांडाल में उनके चारो तरफ परिक्रमा करते हुए धूम-धाम से जयकारा लगाते, संगीत पर नाचने-गाने वाले मुस्लिम काफिरो के ख़िलाफ़ फतवे का इंतजार कर रही है। इस्लाम में मूर्ति पूजा, नाचना-गाना, दूसरे धर्म के धर्म स्थलों पर जाकर माथा टेकना, यहाँ तक भारत माता की जय, वन्दे मातरम नारे लगाना तक हराम है, फिर इन मुस्लिम युवाओं के ख़िलाफ़, जो अपनी पहचान ऊँचे पजामे, जालीदार गोल टोपी, बिना मूछ वाली लम्बी दाढ़ी,आँखों में सुरमा,कंधे पर जालीदार कपडा आदि को छुपाकर गरबा-डांडिया स्टिक लेकर बड़े जोश के साथ उचक-उचक, फुदक-फुदक कर, पंचर,कार वाशिंग,टेलर,मच्छी-मुर्गी आदि की अतिक्रमण वाली कच्ची दुकान बंद कर, किराये की गाड़ी या फिर टेम्पो में 10 रुपये भाड़ा (वो भी भेजा-भड़क कर),भाड़े के कपडे पहन कर गिरते-पड़ते, नाचने-कूदने, इस्लाम की तोहिन करने ख़ुशी से पहुंचे कब फतवा जारी होगा? ऐसे काफिरो को कब इस्लाम के मौलवियों द्वारा सबक सिखाया जायेगा ? यह सवाल देश का हर नागरिक जानना चाहता है?
हालाँकि इन मौलवियों ने तो गर्दन जमीन में धंसा ली थी लेकिन हमारे देश के बजरंगी भाइयो ने बड़ा दिल दिखाते हुए इनके साथ ढूंढ-ढूंढ कर बढ़िया तरीके से डांडिया खेला और खेलने के बाद खाकी वर्दी वालो के हवाले भी कर दिया ताकी यह अपने परिवार का नाम देश के विभिन्न न्यूज़ में लाकर रोशन कर सके। पंचर की दुकान से इतनी कमाई तो होती नहीं कि देश के विभिन्न बड़े-बड़े मीडिया एजेंसी के प्लेटफॉर्म पर आ सके और प्रसिद्ध हो सके लेकिन अब बजरंगियो की दयालुता से उनकी मोहल्ले में अच्छी-खासी पहचान बन गयी होगी।
लेकिन क्या करे उल्टी बुद्धि के लोगों की कमी नहीं भारत में, अब द फायर से आग लगाने वाली फारफा खानुम पेरवानी जैसी बोल्ड आंटी जो कभी हिजाब के समर्थन में बच्चियों को इस्लाम के नियम फॉलो करने के लिए बरगलाती नजर आती है तो कभी मस्जिद वगेरा के मुद्दे पर इस्लाम के नियमो का हवाला देती है, भारत माता जय के उद्धघोष तक पर वह इस्लाम के नियमो का हवाला देती हुई नजर आयी लेकिन यहाँ उनका बजरंग दल के कार्यकर्ताओ के लिए उल्टा बल्कि यूँ कहे तो इस्लाम विरोधी रवैया देखने को मिला। वो उन काफिरो के साथ खड़ी दिखाई दी जो इस्लाम के नियमो के विपरीत जाकर देवी दुर्गा के पांडाल में परिक्रमा करते हुए मातारानी के जयकारा वाले संगीतो पर मटक-मटक कर थिरक रहे थे और अपने ही धर्म को दूसरे धर्म के लोगों के सामने बेइज्जत कर रहे थे। मुझे तो पूरी उम्मीद थी की पेरवानी जी इस बार तो बजरंग दल के लोगों के साथ खड़ी होगी लेकिन वो तो खुद के ही धर्म के नियमों के विरुद्ध जा खड़ी हुई (बेडा गर्क हो इनका)।
खेर इन पर फतवा जारी होगा या नहीं, यह तो नहीं पता लेकिन इतना पता है जिस धर्म निरपेक्षता की बात करते हुए इन काफिरों की मरम्मत और इनको मातारानी के पांडाल से लात देके बाहर करने की आलोचना कर रहे है तो उनसे मैं पूछना चाहता हूँ "यह अब्दुल अपने साथ "नसीफ पंचर सेण्टर" वाले अब्बा, "सुपर स्टार टेलर" वाले भाई, "ऐवन कार मैकेनिक" वाले दोस्त और "असलम मुर्गी" वाले चाचूजान को तो जिन्न बाबा ब्रांड का इत्र लगाकर साथ लेकर आ गया लेकिन दो किलो पाउडर एवं आधा किलो लाल सुर्ख लिपस्टिक लगाकर चमकीले कपडे पहने घर पर मातारानी के गरबे में नाच-गाने के साथ मातारानी की आराधना के लिए इंतजार करती बहिन (शुरू के 15 साल तक)उर्फ़ पत्नी सलमा,अम्मी रेशमा, फूफी फातिमा, भाभीजान नफ़ीसा,खाला रुक्सार, मौसी उर्फ़ चाची सबा और बची हुई 6-7 महिला सदस्यों को क्यों नहीं लाया ? क्या दूसरे धर्म के आयोजन में स्वयं के धर्म के नियमो के ख़िलाफ़ साम्प्रदायिक सद्भाव दिखाने का अधिकार घर पर बैठी महिलाओ को नहीं है ?
मैं तमाम वामपंथियों और उन लोगों से पूछना चाहता हूँ जो इन काफिरों को धर्म के आयोजन में से धर्म के आधार पर भगा देने के ख़िलाफ़ सविंधान एवं धर्मनिरपेक्षता की दुहाई दे रहे है, यदि नवरात्रि डांडिये के दौरान मुस्लिम युवक मातारानी की परिक्रमा कर उनके जयकारो पर नाच सकते है तो करौली में हिंदू नव वर्ष या रामनवमी पर आयोजित होने वाली भगवा रैली में होते जय श्री राम के उद्घोष पर हिंसा क्यों हुई?जब डांडिये में पूजा की हुई डांडिया स्टिक लेकर डांडिया कर सकते है तो क्यों किसी मुस्लिम युवक से भारत माता की जय या वन्दे मातरम कहलवाना इस्लाम विरोधी हो जाता है ? यह दोगला पन कहाँ तक जायज है भाई ?
खेर छोड़ो यह सब, अब बात करते है काफिर जैसे ताहिर हुसैन, अल्लाउद्दीन, तैमूर के अब्बा, अमानतुल्लाह खान, इमरान अली आदि जो मेकअप करके तैयार होकर चले आते है मातारानी के धार्मिक आयोजन गरबे में। इन काफिरों को गरबा पांडाल में एंट्री करवाते है हिंदू धर्म में पैदा होने वाले सपोले अरविन्द फर्जीवाल, संजय खाप जैसे विधर्मी जिनका उद्देश्य डांडिया-गरबा खेलकर मातारानी को प्रसन्न करना नहीं बल्कि गन्दी नजरो से पांडाल को दूषित करना होता है और यह सपोले ओसामा के दलाल बनकर बहिन-बेटियों को छेड़ने के लिए इनको यहाँ लेकर आते है। इसके बदले ओसामा इनसे गाड़ी के पंचर में 10 रुपये कम ले कर इन्हे खुश कर देता है, भले है ओसामा चुपचाप से इनकी गाड़ी में से आधा लीटर पेट्रोल भी चुरा ले, लेकिन हिंदू सपोलों का विश्वास इन पर अपने बापू से भी ज्यादा होता है। या फिर ओसामा जब असलम तोता, शहीद पंटर, जुबैर मुस्तैदी, ताहिर एवं अन्य साथियो संग आते है तो बिना डर के हिंदू बहिन-बेटियों के साथ छेड़खनी करने के साथ-साथ वीडियो उतारते है और जब कोई सनातनी इसका विरोध करता है तो उसको घेर कर चाकू-छुरी मार कर रफूचक्कर हो जाते है। इन काफिरों का उद्देश्य सिर्फ लव जिहाद फैलाना है, यह एजेंडा के तहत आते है। हमे सोचना पड़ेगा कि हम स्वय: क्यों अपनी बहिन-बेटियों को सूटकेस में पैक होने के लिए माध्यम बने? गरबा-डांडिया आयोजनकर्ता को अपनी धर्मनिरपेक्षता या व्यापर, धर्म के पब्लिक आयोजन में नहीं दिखानी चाहिए बल्कि खुद के घर के प्रोग्राम में दिखानी चाहिए यही मेरा उनसे आग्रह है।
अब अपने विचारो को अंतिम लाइन में संक्षिप्त करते हुए बजरंग दल के कार्यकर्ताओ को धन्यवाद अर्पित करना चाहूंगा कि इस बार सिर्फ तीन राज्य गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में आपको मरम्मत का मौका मिला है अगले वर्ष राजस्थान भी आपका ही होगा।
जय श्री राम...और हाँ काफिरों के ख़िलाफ़ फतवे का इंतजार रहेगा....
(नोट इस लेख में लिखे गए सभी नाम प्रतीकात्मक और काल्पनिक है)
Jai ho
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